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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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ख़ुद का चराग़ जला ले

ख़ुद का चराग़ जला ले

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सपनों के अपने तू पंख लगा ले

बढ़ा क़दम औऱ फ़लक चूम ले


जीत, हार पर तेरा अधिकार नहीं है,

तू कर्मो को अपने प्रारब्ध बना ले


अपने दर्द से कभी तू घबरा मत,

अपने जख़्म को तू गले लगा ले

जीवन समर में अभावों से रो मत

कर्ण का चरित्र तू जीवन मे उतार लें


ये जीवन तेरा, ये ज़माना याद रखेगा

तू ज़रा सा खुद का चराग़ जला ले



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