खामोशी का शौर
खामोशी का शौर
खामोश हूँ पर बहुत शोर है मुझ में,
कोई जान ना पाए इतने गहरे राज दफन हे मुझ में..
इतने नादान नहीं जितना हमें समझा जाता है,
देखो कभी तो ऐब बहुत है मुझ में
खामोशी से सब कह देती हूं,
हर बार लफ्जों में बयां करने की आदत नहीं वह मुझ में
मुस्कुराहट मेरी देख कर, यूं खुशी का अंदाज़ा न लगाया करो
खामोशी सुनो तो दर्द बहुत है मुझ में...
लोगों की भीड़ ही हमारे आगे, पर अकेले लड़ने का फितूर है मुझ में..
कोई साथ दे या न दे मेरे सफर में..
रब ने अपनी पहचान बनने के लिए ही कई हुनर दिये है मुझ में।