कभी मेरी भी सुनो ना
कभी मेरी भी सुनो ना
हर जन्म की मृत्यु निश्चित है
कभी मैं कभी तुम
कभी कुछ अनमोल रिश्ते
और कभी हमारा प्यार...
क्या ये आश्चर्य की बात नहीं कि
प्रेम की कोई दिशा या अंत नहीं...
अब तुम ही बताओ
इस मे दोष किसका दें..!
इक आस थी तुम्हे पाने की
सात जन्म तक साथ निभाने की
ख़ुशी के नाम पर बस
कुछ पल ही तुम मिली
और अब बस मेरे गम में ही
मुझे सबसे बड़ी खुशी मिली ।
आज मैं सरस्वती नदी सा बेजान हूँ...,
खुशी के ज्वार और दुःख के भाटे
मानो कहीं मेरे दिल ओ दिमाग में
जैसे असमंजस के गोते खा रहे हों ।
शायद,
जो मिला वो प्रेम भर कुछ नीर
और बाकी सब
रेत समान मेरा भाग्य ही है ।
तुम सुन रही हो ना...
सुना है बिदाई अगर खुशी खुशी हो तो
सात जन्म भी हँसी हँसी मर सकते हैं ।
रुक्मणी की तरह ना सही
कुछ पल के लिए
राधा बनकर अंतिम बिदाई तो दे दो ।
अब तो ये सारा जहां
धुंधला धुंधला सा लगने लगा है,
मानो जैसे अंधेरे ने मेरी आँखों पर
कब्जा कर लिया हो ।
मुझे पता है ए मौत,
तू मेरे करीब है...
रुक जा मेरे दोस्त, थोड़ा हँसने तो दे मुझे ,
ये जो मेरी बिदाई की घड़ी है,
झूठी हंसी ही सही पर दिखाना तो पड़ेगा ।
हां तो तुम सुन रही हो ना...
आखरी बार आजाओ उसी गुमनाम राह पर ,
बस एक बार दीदार हो जाये,
झूठा ही सही पर आना जरूर ।
वही आखरी मुलाक़ात वाली दास्तान को
मेरी ज़िंदगी की आखरी पड़ाव पर
फिर ताजा कर दो...।
आ गयी क्या तुम..!
छुपके से तुम्हारी कानो में
आज आखरी बार कुछ कहना है मुझे ।
मेरी सिर्फ एक आखरी ख्वाहिश है,
क्या हम एक बार उस अधूरी कहानी को
अंतिम रास्ता नही दे सकते..?
चाहे झूठा ही सही
पुनर्जन्म के साथ...!
..
.
सुना तुमने..?
क्या तुम आगयी...?