कौन अपना कौन पराया
कौन अपना कौन पराया
समय का कोइ भरोसा नहीं,
अच्छे समय में सब साथ देते हैं,
बुरे समय में सिर्फ़ अपने साथ देते हैं।
कौन अपना कौन पराया ये कौन बतायेगा
पराया बुलाने पर भी मदद के लिए नहीं आएगा
अपना बिना सोचे दौड़ा चला आएगा!
अपनों की परख अपनी आँखों में अपनों के लिए
आँखों की नमी से की जाती है,
अपनों कि फ़िकर में तो रात में नींद भी नहीं आती है।
अपनों का दर्द अपनों से छुपता नहीं
अपनों का दिया दर्द भी कभी मिटता नहीं।
ख़ून का,दिल का या हो दोस्ती का रिश्ता
जो ख़ुद्दारी से निभा दे वही है फ़रिश्ता।
जो “मैं “को महत्व दे वो अपना हो नहीं सकता
जो अपनों को अपने से आगे रखे वो सपने में भी खो नहीं सकता।
अपने से पहले जो मंदिर में अपनों के लिए दुआ माँगता है
उसकी दुआ तो भगवान भी नहीं टालता है।
अपनों के साथ समय का पता ही नहीं चलता
पर समय के साथ अपनों का पता ज़रूर चलता है।
जो अपना होगा वो किसी भी हाल में आपको छोड़ेगा नही
पराया तो तुमसे बेहतर कोइ मिल जाए तो पीछे मुड़कर देखेगा भी नहीं ।
अपनेपन की नींव दिल से जुड़ी हेती है
परायों के साथ तो मतलब जुड़ी होती है।
अपनों की ख़ुशी में जो अपनी ख़ुशी ढुंढ ले
ऐैसा निस्वार्थत प्रेम ही तो अपनेपन की निशानी है।
अपने तो अपने होते हैं
