आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है,
नाकाम हमारी ज़िन्दगी और तू आबाद है!
सड़कें तेरी जागीर, हम घर की खिड़कियों के
कर्जदार हैं!
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है!
ये नील गगन तेरा, चाँद तारे तेरे राज़दार हैं,
हम दूसरों के ना हो सके, बस ख़ुद के वफ़ादार हैं!
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है!
ये झील, ये ठंडी हवाएँ, ये हरी-भरी पत्तियॉं
और रंगबिरंगे फूल,
ये सब हुए तुम्हारे, हमने ना की कदर यही थी
हमारी भूल!
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है!
ये सूरज भी तुम्हारा, अंधकार हमारा है,
आज इन्सान पिंजरे में और तू आज़ाद है!
क्या खूब ये मंज़र, क्या खूब ईश्वर का इंसाफ़ है,
आज इंसान पिंजरे में और तू आज़ाद है!!
