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Anonymous Writer

Abstract

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Anonymous Writer

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कैसे तैर जाऊ मैं

कैसे तैर जाऊ मैं

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डर का समंदर उफान पर है

किस तरह तैर कर जाऊँ मैं।


ज़िन्दगी की दौड़ में हिस्सा लिया है

मगर खुद से ही दूर अब भाग रही हूं मैं।


टूटे टुकड़े अब भी आंखों में चुभ रहे हैं

तुम बताओ नए सपने कैसे देखूँ मैं।


समय लगता है सब ठीक होने में

मगर रूठे वक्त को कैसे मनाऊँ मैं।


दलदल पर पड़ रहा हर एक कदम है

तुम बताओ मंज़िल तक कैसे पहुंचुँ मैं।


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