कैसे रोकोगे..!
कैसे रोकोगे..!
वो आदमी था बड़ा नादान
अहम था उसपे सवार
कहने लगा यूं बनके अहम का शिकार;
चलो आज बंटवारा कर ही देते है
तुम अपने हिस्से की जमीं रखलो
और हम अपना आसमान रखते है।
हमने भी ये जान लिया आदमी नादान है;
अहम उसपे सवार है
तोड़ना है पड़ेगा उसके अहम को
करके कुछ सवाल है;
तुमने जमीं और आसमान
को तो बांट लिया पर
कैसे राेकोगे उन क्षितिजों को मिलने से ?
कैसे बांटोगे उस पहाड़ों को?
जो सर उठाएं खड़े है आसमान को छूने को
कैसे रोकोगे इस आसमान से बातें करती
इस ऊंची गगन- चुंबी इमारतों को
कैसे रोकेगे उस बादलों को ?
जो धरती से मिलने को तरसते हैं
जो बरस बरस के धरती को चूमते हैं
कैसे रोकोगे उन बादलों को बरसने से
कैसे रोकोगे उस सूरज की रोशनी को
जो तुम्हारी आंखों के खुलने से पहले
इस धरती का दामन चूमती है और
तुम क्या बांटोगे उस धरती और आसमान को ?
चले तो हो तुम आसमान को अपना बनाने
जब की तुम अपना आशियाना
इस धरती पर बासाएं बैठे हो !
सुनके हमारे सवालों को
वो बोला बनके बेबाक है
समझ गया में एक मामूली इंसान हूं
इस जमीं आसामन को बांटने की
मेरी क्या औकात है।