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Deepika Dalakoti Dobriyal

Romance

4  

Deepika Dalakoti Dobriyal

Romance

कैसे कहूं ...

कैसे कहूं ...

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कैसे कहूं मुहब्बत का काम ना होगा,

अभी तो ज़िंदगी का खुदा से सामना होगा !

इस कदर कहेगा वो दास्तां अपनी,

मानो बंदे को मिलने के अलावा

खुदा का कुछ और काम ना होगा।


झरने की तरह, सूखी ज़िंदगी पे किसी ने दी दस्तक,

किसने मेरे साँसों के कारवां को इशारा सा दिया,

था ज़ख़्मों ही ज़ख़्मों से भरा दिल-जिगर मेरा,

फिर उसमें छिपी रूह की शिनाख्त कौन किया ?


हथेली ने छुई थी हथेली...

या लकीरों ने थी छुई लकीर ?

सच तो ये है कि थी छुई,

किसी तक़दीर ने कोई तक़दीर !


छू कर ये लगा मानो, रूह छू गयी जैसे

वो तेरी थी या मेरी, ये पहचान करूँ कैसे?

क्या पता था दर्द का अब ज़रा भी नाम ना होगा

क्या पता था जिंदगी से इस कदर सामना होगा !


अब तेरी बात पे आहिस्ता यकीन हो आया है मुझे,

कि आज से नहीं सदियों से जानता हूं तुझे !

वो जुदाई के पल तन्हाई में कतरा-कतरा जलना

वो दरगाह में चुपके से सजदा करना


वो पुराना गम एक पल में सब दफ़न करना

मुश्किलें होने पर भी मायूसी सब कफ़न करना

वो मेरा सोचना और तेरा वो ही तोहफा लाना,


फिर उस तोहफे को उसी समय मुझको पहनाना,

फिर किसी बात का कहीं से मेरे मन में आना,

फिर उसी बात को इक्तफाकन तेरा दोहराना।


उसी आवाज़ की खुराक पर जी लेते हैं,

प्यार में सने लफ़्ज ना जब तक सुन लेते हैं,

आपकी ज़ुबाँ से निकली बात अजब ही मलहम है,

ना मिले रूह को तो, अधमरे से लगते हैं !


जब किसी ख़ौफ़ से अचानक तिलमिला उठते,

नाम लेकर आपका हम दुआ लिखते,

कुछ अजब मर्ज़ हो गया है हमको शायद,

दुआ किसके लिए अब किसको लिखते!


कुछ नये से मरासिम महसूस होते हैं,

आजकल आप हमारे खुदा से दिखते !

बात ये भी कुछ अजब महसूस होती,

कि खुदा के लिए दुआ अब खुद खुदा को लिखते !


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