होली है !
होली है !
फूलों से रंग गिरवी माँगा,
थी खिली सी मैं फिर भी माँगा-
तुझे देखा कई ढंगों मैंने,
एक और तुझी से ढंग माँगा!
फाल्गुन की महक है हवाओं में,
यादों की खनक है चाहों में,
फिर देख कर उगते सूरज को,
सतरंगी रंग का संग माँगा !
हवा की हथेली थामे जब,
अबीर मगन हो नाचेगा,
पिचकारी के वार से तू-
मुझे अपने रंग में राचेगा !
तेरे मेरे रंगों के रूप,
कोई कैसे भला फिर जाँचेगा,
एक रंग-रूप जो सदियों से-
उन में कौन सा रंग फिर साजेगा !

