Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Deepika Dalakoti Dobriyal

Abstract

5.0  

Deepika Dalakoti Dobriyal

Abstract

शायद धरती ले रही है करवट कहीं !

शायद धरती ले रही है करवट कहीं !

2 mins
317


शायद धरती ले रही है करवट कहीं

क्षितिज की ओर जब निगाहें डाली

सर्दी विदाई लेती सी देखी मैंने,

अब सामने रंगी बसंत की लाली


नींद की गुदगुदी पानी को सौंपी

फिर कदम बड़े मकान से बाहर,

धरा को पोषाख बदलते देखा,

धरती चल रही थी मानो बिन आहट


करीने से सजे हुए पेड़ के पत्ते-

ऊपर वाले की कारीगरी का आईना थे,

फूलों से जैसे जन्नत सजा रखी हो,

पहुँच गये हम भी कुछ मुआईना करने !


हवा की ताज़गी में रोम रोम तर जाता,

हर इन्सा काश इसी ताज़गी के कश पाता !

नंगे पैरों के तले घास की थी गुदगुदी,

काश मुझे खुदा फिर से एक बच्चा कर जाता !


चिड़ियों की चहकने के बजते मृदंग,

प्रकृति मैं सुरों का ख़ज़ाना खनका,

खुश होकर नाचते थे पत्ते कहीं,

आज मिला खिलखिलाता मौसम मन का !


पर्वत जो पहने थे बर्फ की अचकन ,

अब वो सफेदी भागीरथी बनती जाती है

सागर तक दौड़ लगानी है उसे,

पत्थरों को झटकती जाती है!


कभी तिनके से दिख रहे थे जो खेत कहीं-

अब उन खेतों की फसल ज़ोरों से सिर उठती है,

ये झरने, ये नदियाँ,ये प्रकृति के फव्वारे,

सब फसलों में अपने प्रेम को लुटाती हैं !


फिर सागर किनारे की नारंगी संध्या-

जीवन के रंगों को गिरवी रख जाती है,

लहरों से पैरों तले फिसलती सी रेत,

समय के फिसलन की याद दिलाती है


रात्रि की चादर पर चमकता चंदा

उद्धार की रौशिनी से जगमगाता है,

यह इशारा कर रात भर चमकता रहता है

बसंत अब पूरब को फिर से आता है !


Rate this content
Log in