काश
काश


काश !!
माता-पिता की व्यथा को बच्चे समझ पाते,
तो उन्हें यूँ तन्हा छोड़कर कभी न जाते।
बच्चों की खुुशी के लिए,
वो अकेले रह लेते हैं।
बिन किसी से कुछ कहे,
दुख,तकलीफ सब सह लेते हैं।
माता-पिता की दर्द भरी कराहटों को बच्चे देख पाते,
तो उन्हें यूँ तन्हा छोड़कर कभी न जाते।
आँखों से उन्हें दिखता नहीं,
ठोकर खाकर वो संभलते हैं।
घुटनों ने भी साथ छोड़ दिया,
अब लाठी के सहारे चलते हैं।
माता-पिता के बुढ़ापे का लाठी बच्चे बन पाते,
तो उन्हें यूँ तन्हा छोड़कर कभी न जाते।
बिस्तर पर पड़े-पड़े वो,
सूनी दीवारों को ताकते।
अंत समय फिर बच्चों को,
यादकर अपने प्राण त्यागते।
माता-पिता के अंत समय की
पीड़ा को बच्चे महसूस कर पाते,
तो उन्हें यूँ तन्हा छोड़कर कभी न जाते।
भविष्य में बच्चे भी,
किसी के माता-पिता बनेंगे।
बुढ़ापे में उन्हें भी सहारा मिले,
आस यही अपने बच्चों से करेंगे
पर जैसा बोते हम यहाँ,वैसा ही काटते इस बात को बच्चे समझ पाते,
तो माता-पिता को यूँ तन्हा छोड़कर कभी न जाते।