काश की कशमकश
काश की कशमकश
लिखने बैठी आज तो सोचा क्या लिखूं
है क्या कुछ ऐसा जिससे पड़ने में हो कोई इच्छुक
थोड़ा सोचने पर कुछ किस्से आखों के सामने लगे तैरने
जैसे अचानक एक मुर्दे में सास हो लगे चलने
बेखयाली में कितनी उम्र गुज़र गई
जिन्दगी जीनी कुछ मुझे नहीं आई
कुछ तुने नहीं सिखाई !
और आज है, काश की कशमकश
काश यह ना किया होता
काश वो ना किया होता
तो जिन्दगी का रंग कुछ और होता
पर काश का भारी शब्द
समझ ही उम्र के उस पड़ाव में आता है
जब वापिस जाने का पूरा रास्ता
टूट चुका होता है
लेकिन जिन्दगी तो नाम है आगे बढ़ने का
आज के वर्तमान का
कल के भू
त बनने का
पीछे मुड़ देख
पछताने का नहीं कोई काम
त्रुटियों से सीख
सुधार करने में है नाम
जो हो गया, सो हो गया
उसे तो मिटाया जा नहीं सकता
हां आगे का रास्ता
समझदारी से है, बनाया जा सकता
करावा जो पल का गुज़र गया
सो गुज़र गया
वापिस तो एक लम्हा भी
लाया जा नहीं सकता
कुदरत का यह नियम
किसी हाल में भी
बदलवाया जा नहीं सकता
तो चलो
आज में ही जी लें, जिन्दगी जी भर
हर लम्हे में, सैकड़ो पल
उतार दें उन कर्जो को
जो आत्मा पे बोझ हैं
बता दें उन सब को
जिनकी वजह से
जिन्दगी में भोर है।