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Sunita Nandwani

Abstract

5.0  

Sunita Nandwani

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द्रोपदी की दुविधा

द्रोपदी की दुविधा

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द्रोपदी की दुविधा


कुरूक्षे़त्र के मैदान में द्रोपदी खडी सोचती है

क्या उसका मान 

उन सब लाशों का बोझ उठा पायेगा।


क्या उसका घायल अभिमान

उन सब घायलों को उत्तर दे पायेगा


क्या उसके खुले केश

उन सैनिकों की मॉओं विघवाओं को इन्साफ दिला पायेगा


क्या उसका हठ

उनके अनाथ बच्चों को कभी बचपन लौटा पायेगा


क्या उस मौत के खोफनाक मन्ज़र की यादें भुला पायेगी।


क्या वो बिखरा हुआ रक्त

सिसकती हुई हिचकिया

दर्द की करहाटें

सड़ी हुई दुर गंध

छटपटाती हुई देहो को

कभी भी अपनी आत्मा में दफन कर पायेगी।


कुरूक्षेत्र के मैदान में खड़ी द्रोपदी यह सोचती है।


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