भ्रम
भ्रम
मेरी ज़मीन ने आज
आसमान छूने की तमन्ना की!
समुंदर के तलातुम ने
चाँद का साथ माँगा,
ज़र्रे ने हवाओं का हाथ थामा
मेरी दुआओं ने सितारों से आशना चाहा।
पूरा सरबसर,मेरी ज़मीन को,
आसमान से मिलाने निकला।
सूरज़ ने, किरणे बरसाई
बादलों ने, बूंदे छलकाई
परिन्दों ने परवाज़ बढ़ाई।
पूरा सरबसर,मेरी ज़मीन को,
आसमान से मिलाने निकला।
कुछ आसमान झुका
कुछ ज़मीन का मन रूका
कुछ ग्रहों से आस की
कुछ नक्षत्रों से फरियाद की।
पू
रा सरबसर,मेरी ज़मीन को,
आसमान से मिलाने निकला।
पत्ते कंपकपाने लगे
पहाड़ दड़दड़ाने लगे
पंछी चहचहाने लगे
गगन अपना रंग बदलने लगा
और,दूर क्षितिज पर
आसमान ने मेरी ज़मीन का हाथ थाम लिया।
यूँ तो यह शायद ,भ्रम ही था...
पर भ्रम में ही सही,
मेरी ज़मीन ने, आसमान
छूने की तमन्ना पूरी की।
भ्रम या सत्य,
क्या अंतर पड़ता है ?
जब पूरा जीवन ही
भ्रम की नींव पर
सत्य समझ अड़ा है
पल का तो पता नहीं, पर
बरसों की उपक्रम से सजा है।