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Pratibhamayee Tandi

Crime Inspirational

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Pratibhamayee Tandi

Crime Inspirational

कांच की गुड़िया

कांच की गुड़िया

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आज फिर एक माँ ने आँचल आँखों से सरकाया होगा

अंदर ही अंदर वो पिता छुप के लाखों से घबराया होगा

कॉलेज खुल रहे हैं, बेटियाँ हॉस्टल जा रही हैं

नादान आँखों ने सलाखों से उन राखों से टकराया होगा।


हाँ! हाँ! अब कोने में लाश नहीं, बल्कि राख मिलती है

कहीं कोई नन्ही कली अब बस ख़ाक खिलती है।

वैसे तो हैं वे सबपे भारी, वो कहते हैं न "आज की नारी"!

थर्राती सांसें उसकी अटक जाती हैं,

जब भी किसी बाज को वे पटक जाती हैं ।


पर तुम्हें मालूम है? सांसें उनकी भी थर्राती हैं

कि लाशें शेरनियों की अब और नहीं घर आती हैं

कि नानी बुलाती "ओ! मेरी कांच की गुड़िया"

कि माँ की चूड़ियां चूर होती जब हल्के से टकराती हैं।


बहुत कम ने बताया कि 'कांच के भी खून खौलते हैं,

नोच कर छोड़ते हैं वे जब बाज आकर सीना तौलते हैं।



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