काला दर्पण
काला दर्पण
उजली चमकीली काया की परछाई काली काली
पीला प्रखर दमकता दिन तो निशा काली काली
रोशन निखरता रूप आदम का जिस पे वो इतराए
मन के कुएं में झांका तो काली काई नजर आए,
ये मैल है कर्म स्वार्थ द्वेष छल अभिमान कुंठा का
जिसे ढकने के लिए ऊपर दिखावे का लेप लगाए
वो ढके अपनी परतों को जग से भी मुंह छुपाए
लेकिन मदारी राह का उसे अपना दर्पण दिखाए,
दर्पण सबसे अच्छा है सच्ची तस्वीर दिखाता है
इसीलिए हर कोई इससे छिपता नजर आता है
क्या देखे सूरत को
ई क्या ही पंडित भाग्य बताए
कर्मों का लेखा जोखा घूम फिर के सामने आए,
जीवन जीने के अजब तरीके अंदाज खासे नए हैं
नए करतब सीखता बंदर जब जब डमरू बाजे है
सारे खेल तमाशे सब बदले मदारी देख के दंग है
बुद्धिमान भी अचंभित देख के बस आंखें मीचे है,
अब कौन सा दर्पण दिखाएं इनको कैसे समझाएं
मन के काले लोगों को क्या काला दर्पण दिखाएं?
काला दर्पण दिखाएं... काला दर्पण दिखाएं।