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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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कागज़ की नाव

कागज़ की नाव

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पानी साफ है या गंदा।

 किसे कब फर्क पड़ता है।

 नियम कागजों पर बनते हैं।

 कागजों की नाव बनती है।


नाव गंदी हुई या साफ रही।

तैर गई काफी है।

उन्नति हुई या अवनति।

गति हुई काफी है।


बेसबब शहर आ गए।

 बेसबब जिंदगी न बनाइए। 

वक्त थमने से पहले,

 गांव अपने लौट आइए।


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