Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

khwahish sharma

Abstract

4  

khwahish sharma

Abstract

ज़रूरत

ज़रूरत

2 mins
453


सिर्फ़ ज़रूरत हूं मैं तेरी ये जानती हूं,

रहना चाहते हो तुम मेरे साथ पर कब तक?

जानती हूं कि मैं अलग हूं थोड़ा

और सच मानो तो अलग ही रहना चाहती हूं,


 कुछ बातें चाहती हूं मैं कि तू समझ ले मेरे बिना बोले..

क्योंकि सब कुछ मैं खुद नहीं समझाना चाहती हूं।

 नहीं हूं मैं इतनी आधुनिक सोच वाली कि

रिश्ते बस ये सोच कर बनाऊं कि कल की फ़िक्र ना हो,

 मुझे नहीं ग्वारा हैं वो पल जिसमें तेरा ज़िक्र ना हो!

मैं नहीं चाहती तेरे लिए खुद को सजाना संवारना,


 अगर सच में अच्छी लगती हूं तो मेरी बिखरी जुल्फों से ही मोहब्बत कर।

 पसंद हैं मुझे वो छोटी छोटी खुशियां जो बहुत सस्ती मिल जाती हैं,

  पैसों से हसरतें नहीं बस चीजें खरीदी जाती हैं,

आसमां से चांद तोड़ लाने का वादा नहीं चाहिए..

 बस अरमान है उसी चांद को तेरे साथ देखने का।


 झल्ली लगती हूं ना मैं तुझे जब बिना मतलब के परेशान होती हूं..

 पर क्या समझा है तूने मेरे अंदर के शोर को जब मैं शांत होती हूं!

 सुबह उठते ही सबसे पहले सिर्फ़ तेरी आवाज़ सुनना चाहती हूं,

  जानती हूं इतनी भी ज़रूरी नहीं हूं तेरे लिए लेकिन बनना चाहती हूं।


 ज़रूरत हूं मैं तेरी या ज़रूरी हूं तेरे लिए ये अक्सर तुझसे सुनती हूं,

  लेकिन ज़रूरत नहीं मैं तेरी चाहत होने के सपने बुनती हूं..

  ज़रूरत बदल जाती है पूरी होने के बाद देखा है मैंने

अधूरी ही सही लेकिन जो हमेशा तेरे साथ रहे वो ख्वाहिश होना चाहती हूं।

  थक गई हूं अब मैं अब भटकते भटकते, तेरी आंखों में चैन से सोना चाहती हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract