जो हाथ परिश्रम वाले हैं
जो हाथ परिश्रम वाले हैं
कविता
जो हाथ परिश्रम वाले हैं
******
इक तरफ हाथ मेंहदी वाले,
इक तरफ परिश्रम वाले हैं।
जो हाथ परिश्रम वाले हैं ,
वो ही जग के रखवाले हैं।।
*
मेंहदी वालों से कह दो ये,
श्रृंगार करें घर में बैठे।
नाज़ुक हैं उनके हाथ अभी ,
अंगार नहीं ढो पाएंगे।।
रण उनके बस की बात नहीं ,
कोमलता जिनके रग रग में।
शेरों के जिगर रखेंगे जो,
वो तीरों को लौटाएंगे ।।
हैं मेहनतकश इंसानों के,
क्या हुआ अगर कर काले हैं।
जो हाथ परिश्रम वाले हैं ,
वो ही जग के रखवाले हैं।।
*
हो जिसका काम करें वो ही,
तब ही तो काम सुधरता है।
कागज़ की नाव बना करके,
क्या कोई पार उतरता है।।
तलवार सुई का काम करें
क्या संभव है, आसानी है।
क्या सुई युद्ध में जाकर के,
कहला सकती मर्दानी है।।
विश्वास के काबिल हाथ वहीं,
जिनके आभूषण, छाले हैं।
जो हाथ परिश्रम वाले हैं,
वो ही जग के रखवाले हैं।।
*
काले कहकर मत हाथों का,
अपमान करो जागीर कहो।
ये किला सुरक्षित रखते हैं ,
इन हाथों को प्राचीर कहो।।
जो हाथ समर्थन में उठते ,
वो तो रेशम वाले होगें।
जो नहीं हौसला रखते हों,
उनके मुख पर ताले होंगे।।
जो अपनी किस्मत खुद लिखते,
उनके हर काम निराले हैं।
जो हाथ परिश्रम वाले हैं,
वो ही जग के रखवाले हैं ।।
******
अख्तर अली शाह" अनंत"नीमच