"ज्ञान"
"ज्ञान"
ज्ञान होता वो दरिया है
जो डूबता,वो तरिया है
जो हो जाये,ज्ञान-शून्य
वो हो जाये,ब्रह्म-तुल्य
निर्गुण बन जाता,सगुण
ज्ञान होता वो जरिया है
रब कभी मनु तन धरता है
कभी बनता वो बंदरिया है
पर पवित्र ज्ञान वही हुआ है
जिससे न हुआ,कोई दुखियां है
जिसका हो सही नजरिया है
वो ही पाता रब को हिया है
जिसने पवित्र ज्ञान पिया है
वो ही बनाता रब को पिया है
वो ही वास्तव में ज्ञान जिया है
जिसने सबका भला किया है
इसमें न होती कोई ऊंच है
इसमें न होती कोई नीच है
यह वाल्मीकि रामायण है
यह तुलसी का सवैया है
यह रविदासजी वाणी है
यह रहीम दोहावलियाँ है
यह ज्ञान कहीं गोपियां है
यह ज्ञान कहीं कन्हैया है
ज्ञान की अन्नत कड़ियां है
जो जैसा,ज्ञान रखता इच्छा
वैसा बन जाता पहिया है
ज्ञान,खुद में अनादि मैया है
पवित्र ज्ञान उसने पिया है
जिसने नेकी कर्म किया है
वो ज्ञान नही होता,धूल है
जो छलता,बन छलियां है
वो ज्ञान होता सत्य-दरिया है
जो पीकर न छलके गगरिया है
जो ख़िलाता सर्वहित कलियां है
वो ज्ञान होता सत्यमेव भैया है।
