जंग छिड़ी है !
जंग छिड़ी है !
आप बीती लिखूँ कि जग बीती ,
इसी उधेड़ बुन में कई अर्सों गुज़रे।
फिर लगा कि आपसे कह डालूं ,
फिर सोचा कि आप न समझेंगे,
कि मुझमें तो जंग छिड़ी है।
आज लिखना ही मुनासिब समझा ,
ज़रूरी था क्या ?
जैसा था वैसा ही रहता।
ना आप कहते न मैं सुनती ,
ना मैं बोलती, ना आप सोचते।
ख़्वाहिश ,ज़रूरत, नाम के परे है यह,
या फिर जग हसाई ?
आप कहते हैं, दिल की सुनो ,
पर आप तो दिमाग से काम लेते हैं।
मुझमें तो जंग छिड़ी है I कभी दिमाग़ हावी,कभी दिल क़ाज़ी।
आप को पता है , आप ज़रुरत से ज़्यादा अच्छे हैं ?
यहाँ तो जंग छिड़ी हैI