जलियाँवाला बाग
जलियाँवाला बाग
बैसाखी का था वह दिन शुभ,
पर अंत में जो हुआ काँप कर रह गई रूह बस।
जनरल डायर ने चलवाई यो गोलियाँ,
पर वहाँ बस गूँज रही थी वन्देमातरम
और इन्कलाब जिन्दाबाद की बालियाँ ।
रंगा गई है उनके खून से वहाँ की माटी,
पर हम हिन्दुस्तानियों ने भी क्या याद दिलादी अंग्रेजो को नानी।
कुओं भरा हुआ है उनके रक्त से,
उस रात सोए न थे कई देशभक्त।
जिस माटी में हुए थे पैदा,
उसकी सातंत्रता का था उनका वादा।
भारत में चल रहा था एक बुरा काल,
गिरफ्तार में थे सैफुद्दीन किचलू और और डॉ. सत्य पाल।
कुछ की मोत आयी थो भग- दड़, हल-चल में
बंद हो गईं वो आँखे जिनमें सपने सजाए थे कल के।
कुछ कुएँ में कूदे,
तो कुछ दूसरों के पैरों तले गए रोंदे।
वहाँ आने-जाने का एक था रास्ता,
पर अंग्रेजो का इन्सानियत से था नहीं दूर-दूर तक वास्ता।
अन्याय अभी रुका नहीं,
न जाने ऐसी कितनी दुर्घटनाएँ घटी और कहीं।
जलियाँ वाला बाग है एक शोक स्थान,
मचाकर शोर शहीदों की आत्माओं का करना न अपमान।
दिल से सुनिए सुनाई देगी बच्चे, बुढ़े, नौजवानों को चीख,
पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो माँग रहे थे इस देश की स्वतंत्रता की भीख।
