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Utkarshini Singh

Others

4.5  

Utkarshini Singh

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योद्घा की गाथा

योद्घा की गाथा

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आतंक हटाने इस देश में

लौटूँगी मैं एक नए भेस में।

अगर इस देश की रक्षा से मेरी मौत आएगी

तो मौत की आँखों में डर और खौफ की लकीर साफ़ झलक जाएगी।


लड़ूँगी जब तक है आखिरी साँस

क्योंकि यह देश मेरा मेरा है खास।

पैदा हुई हूँ उस देश में जहाँ लड़ी थी झाँसी की रानी

इसकी एकता बनाए रखने की कसम है हमने ठानी।


कई लोगों के लिए तिरंगा है सिर्फ तीन रंग

यही सोच तो है हमें करनी भंग।

इसे उँचा रखने की खाई है कसम

पर दुश्मन करना चाहते हैं भस्म।


चाहते तो वह भी कर सकते थे घर पर आराम

पर कहते है देश की रक्षा का आया है पैगाम।

जब जाते थे तो कहते थे जल्द ही लौटेंगे

पर क्या पता था तिरंगे में लिपटे होंगे।


कुछ सरहद पार दिवाली से पहले ही रोज दिवाली मनाते हैं

तो कुछ अपने साथियों के कफ़न जलाते हैं।

सरहद पार उसकी मौत आती है

पर दर्द और गम की प्यास परिवार वालों को खाती हैं।


बहुत एहसान हैं हमारे इस देश पर

तभी तो खुशिया बाँटनी है हर घर।

चुकाना है भारत माँ का हर कर्ज

तभी तो इसकी रक्षा है हमारा फ़र्ज।


सरहद पार नसीब होता नहीं है उन्हें पानी

पर देश में यह बस बनकर रह जाती है एक कहानी।

कभी-कभी मिलता नहीं है उन्हें खाना

पर कहते हैं देश की रक्षा का फ़र्ज है उन्हें निभाना।


वही होता है असली योद्धा जो युद्ध में है जीतता

युद्ध के मैदान में भी रखता है दुश्मनों से मित्रता।

युद्ध में भारत माँ ने खोए हैं कितने जानबाज़

पर नेताओं का क्या उन्हे तो बस करना है राज।


दुश्मन को घुटने टेकाना और जिन्दा लौटना

यही कहलाता है युद्ध में जीतना।

भारत माँ का लेकर नाम

करती हूँ इस देश के हर फौजी को शत-शत प्रणाम।


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