जल भर मटकी
जल भर मटकी
गला सूख रहा है मेरा,
कोई दो घूंट पानी तो दे दो।
धरती कहे पुकार के,
प्यासी हूँ मैं, प्यास बुझा दो।
उनको चाह सिर्फ जल भर मटकी,
कहाँ है वो जो जग जग भटकी।
छोटे छोटे सुकोमल सुकुमार,
हरियाली के दाता हैं।
बनाएं जो वातावरण सुंदर,
प्राणवायु जो सुभाता हैं।
उनको चाह सिर्फ जल भर मटकी,
कहाँ है वो जो जग जग भटकी।
अन्न, फल, फूल, सब्जी, सब,
देते निस्वार्थ भाव के साथ।
गिरगिट,गिलहरी, तितली के
उछलने कूदने के बाग।
उनको चाह सिर्फ जल भर मटकी,
कहाँ है वो जो जग जग भटकी।
ढेरों पक्षियों के घरोंदों का आसरा,
जीवन के अस्तित्व का सहारा।
जिसने बिखेरी खुशबू,स्वाद और सेहत,
वही तो है सिर्फ उसकी रहमत।
उनको चाह सिर्फ जल भर मटकी
कहाँ है वो जो जग जग भटकी।
