जिंदगी
जिंदगी
जिंदगी है क्या न जाने कोई
लेकिन मैंने जिंदगी के कुछ पल जी लिए है ।
वह हमेशा मेरे साथ रास्ते में गुनगुनाती है।
मैं उसे ढूंढती हूं वह मुझसे लुका छुपी खेलती है
जिंदगी हमेशा मेरे साथ रहती मुझसे रास्ते से भटकने नहीं देती
मैं कभी रूठ जाती तो वह मुझे मनाती और चैन की नींद सुला देती।
जिंदगी पूरी एक दिन मुझसे बहुत प्यार करती हूं मैं तुझसे
मैंने भी एक सवाल पूछ लिया फिर इतनी तकलीफ क्यों है मेरे साथ
जिंदगी ने मुस्कुरा कर कह दिया मैं जिंदगी हूं पगली
तुझे जीना सिखा रही थी मुझसे शिकायत मत कर।
उस दिन से मुझे जिंदगी से और भी ज्यादा प्यार हो गया
माफ करना ए जिंदगी मुझसे मेरे उन सारे अनगिने
अनगिनत नादानियां के लिए
शिकायत बहुत करती थी तुझसे मैं भी यह जिंदगी
तकलीफों से ही जिंदगी जीने का सलीका मिला है।
अब तो फिक्र मत कर मेरी पहले से रोऊंगी नहीं
मैंने तो छुपते छुपाते अपने गमों से दोस्ती कर ली है।
एक पल अगर रुला भी दे तो दूजे पल हंसा देती है
यह गम तेरे साथ रहकर जिंदगी का सलीका बताते हैं
अपनों की खुशी के लिए अपनों की जिंदगी के लिए
खुद की जिंदगी खुशियों से भर ली है।