जिंदगी
जिंदगी
वो डाली डाली पे पत्तों ने लहराकर पूछा,
ए बदला हवा का रुख है, या है तूफान का सन्नाटा।
कौन सी गहराई थी, जो पेड़ के दिल में छुपी,
ना वो कुछ बोला, ना डाली बोल पायी।
सामने पत्तों की मौत थी खड़ी,
कैसे बोले पेड़ और क्या बोले डाली?
फिर भी दे कर खुशी, पत्तों से वो बोले,
हवा हो या तूफान, छोड़ के गम को, तू जरा हंस ले।
जिंदगी है तो जी भर के जी ले,
कौन देखे आगे क्या है, फिर कभी हम मिले या ना मिले।