लफ्ज़
लफ्ज़
1 min
138
लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
जब जज़्बात उभर के आते हैं
आँखों से आँसू टपकते हैं
और दिल भर आता हैं
लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
जब बेबसी सामने आती हैं
मजबूरी अपनी हद दिखाती है
और हाथ बंधे होते हैं
लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
जब ज़िंदगी घुटन-सी बन जाती हैं
चीख दीवारें लांघती हैं
और बदन सुन्न हो जाता हैं
तब सच में हर तरफ़ से,
लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं।
