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Nurjahan Shaikh

Others

3  

Nurjahan Shaikh

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लफ्ज़

लफ्ज़

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लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं

जब जज़्बात उभर के आते हैं 

आँखों से आँसू टपकते हैं 

और दिल भर आता हैं


लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं 

जब बेबसी सामने आती हैं 

मजबूरी अपनी हद दिखाती है 

और हाथ बंधे होते हैं 


लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं 

जब ज़िंदगी घुटन-सी बन जाती हैं 

चीख दीवारें लांघती हैं

और बदन सुन्न हो जाता हैं 


तब सच में हर तरफ़ से, 

 लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं। 


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