जिंदगी
जिंदगी
निमिष मात्र है जिंदगी, करते बड़ा गरूर,
दो मुठ्ठी राख बनेगी, घमंड हो चकनाचूर।
सब कुछ खत्म हो जाता,चाहे कितना नूर,
एक समान गति पागल,गरीब हो या हूर।।
दिखलाती है जिंदगी,सुख,दुख रूप अनेक,
खुशी और गम आते रहे, सम रहे नहीं एक।
रोक या हँसकर जाते, या फिर अच्छे कहाते,
अंतिम समय लील लेता, छेड़ ले कोई टेक।।
जिंदगी एक पहेली है, हल करना मुश्किल,
पच पचकर चले गए जन,हँसते खिल खिल।
कोई कोई तो मर जाता जिंदगी में तिल तिल,
कभी दूर नजर आती,करती जिंदगी झिलमिल।।
जिंदगी एक नाटक सम, पात्र मिलते अनेक,
जग रूपी मंच पर, अभिनय करते लाग टेक।
नहीं पता कौन पात्र, कब पर्दे से गायब होता,
निज सशक्त भूमिका को,सोच मनन कर देख।।
जिंदगी एक जुआ होती, हार जीत का सट्टा,
कभी जीत हो जाती,कभी लग जाता है बट्टा।
कभी कभी जुआ में, सब कुछ जाता जन हार,
जिंदगी का फल मीठा,पर कभी होता है खट्टा।।
जिंदगी होती हसीन भी, पल पल देती आनंद,
दर्द से भर जाता सीना, भरे दुख दिल में चंद।
जिंदगी कें हसीं पल, कभी नहीं भूला पाते हैं,
कभी मौन हो जाती,कभी करें आवाज बुलंद।।
कभी फूल सम जिंदगी, कभी कली सी होती,
कभी बुलंदी छू जाती, कभी पड़ी धरा पे रोती।
अपना अपना अंदाज हो, कैसे कैसे जीते लोग,
सावन के पतझड़ जैसी,तन व मन को भिगोती।।
एतबार क्या जिंदगानी, कब राह में छोड़े साथ,
कभी सफलता देती,कभी कर देती यह अनाथ।
जिंदगी को जीने का तरीका, कभी तो ले सीख,
नहीं पता कब जिंदगी, राह में खींच ले हाथ।।
