जिंदगी धुएँ में
जिंदगी धुएँ में
आज ठहर जा तू क्यों धुएँ में उड़ाता है जिंदगी ,
सब बिखर जाएगा क्यों नहीं संभालता है जिंदगी ,
यदि ऐसा रहा एक दिन सब तुझसे छिन जाएगा ,
अपनी शौक के लिए क्यों धुएँ में बिताता है जिंदगी ,
बदल दे हालात अभी भी वक्त है छोड़ दे धुँआ ,
वरना एक बंजर सा रेगिस्तान बन जाती है जिंदगी ,
इस धुएँ से धीरे -धीरे बिखर जाता है पूरा परिवार,
फिर सँभालने से पहले ही मिट जाती है जिंदगी,
न जाने इस जिंदगी को धुएँ में क्यों ख़राब करता है,
चाहने पर भी कभी लौट कर नहीं आती है जिंदगी ,
छूटेगी सांसे तू परिवार को भी नहीं संभाल पायेगा ,
तेरे साथ तेरे अपनों के लिए भी मौत बन जायेगी जिंदगी ,
हर समय हर मोड़ पर जिसने तेरा साथ निभाया था ,
तूने तो अपने साथ दाँव पर लगा दी उनकी भी जिंदगी II