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Vivek Agarwal

Inspirational

4.9  

Vivek Agarwal

Inspirational

जीवन रहस्य

जीवन रहस्य

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आओ चलो एक गहरा राज तुम सबको बतलाता हूँ।

जीवन का ये सत्य शाश्वत आज तुम्हें समझाता हूँ।

पञ्च तत्व से बनी ये काया तन अपना ये नश्वर है।

तो क्यूँ इससे मोह करें जब क्षणभंगुर ये नाता है।


तन भले नश्वर हमारा पर आत्मा नष्ट होती नहीं।

मृत्यु के पश्चात भी अस्तित्व अपना खोती नहीं।

प्रेम जड़ से कौन करता है चेतना तभी प्रेम है।

बिन आत्मा तन सीप है जिसमें कोई मोती नहीं।


आत्मा दिखती है कैसी कैसा इसका आकार है।

आत्मा साकार है या शून्य सरीखी निराकार है।

कैसे समझायें अपने मन को आत्मा का अस्तित्व है।

जो स्वयं अनुभव कर सकें बस वही स्वीकार है।


है पवन दिखती नहीं पर हर श्वास में आवास है।

गंध पुष्प की न दिखे पर फिर भी हमें आभास है।

ऊर्जा के रूप कितने पर क्या किसी ने देखा है।

ब्रह्म के भी रूप अनंत और सर्वत्र उसका वास है।


जड़ को चेतन करे आत्मा बिन इसके तन धूल है। 

अजर अमर अनंत अनादि ब्रह्म ही इसका मूल है।

एक ब्रह्म अटल ब्रह्माण्ड में बाकी सब है मिथ्या।

मोह-माया की कीचड़ में फँसना सबसे भारी भूल है।


है गगन में आदित्य एक पर सर्वत्र उसकी धूप है।

कोटि घट में प्रत्येक बिम्ब एक सूर्य का प्रतिरूप है।

इस सृष्टि में भी एक ब्रह्म जीवात्मा हैं भिन्न भिन्न। 

स्रोत ब्रह्म गंतव्य ब्रह्म सब ब्रह्म का ही रूप है।


अस्त्र शस्त्र सब व्यर्थ हैं कभी आत्मा कटती नहीं।

अगणित सूर्य अनल उगलें पर आत्मा जलती नहीं।

जीवन मरण का चक्र निरंतर आत्मा अनुभव करे। 

योनि योनि करती प्रवास पर आत्मा मरती नहीं।


आत्मा का अंत नहीं है और न ही है आरम्भ।

आत्मा अपनी नहीं तो किस बात का है दम्भ।

बिन आत्मा कुछ भी नहीं और आत्मा है ब्रह्म की। 

जब कभी ये बोध होगा वो मुक्ति का प्रारम्भ।


मोह त्याग इस देह का प्राणी ब्रह्म का कर ध्यान।

संसार सारा बस एक माया राज यह ले जान।

अज्ञान दुःख का कारक है और ज्ञान सुख का द्वार। 

सब ज्ञान और विद्याओं से बढ़कर है ये ब्रह्म ज्ञान।



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