"जीवन की सच्चाई"
"जीवन की सच्चाई"
क्यों मूल्यहीन बातों में,
समय बर्बाद कर रहा है।
किस बात की है नफरत,
तेरा धरा यहां क्या है।
संसार में तू, निर्वस्त्र ही आया,
प्रकृति ने पाला, उसी का अन्न खाया।
जाने के बाद भी, कपड़े उतारे जाएंगे,
जो है खास अपने, मिलकर मिठाई खाएंगे।
ये मोटर गाड़ी हवेली, खड़े रह जायेंगे,
कुछ दिन होंगे चर्चे, फिर सब भूल जायेंगे।
कर ले अच्छे करम, भजन साथ जायेगा,
जो करनी करेगा, उसी का फल पायेगा।।