जीवन है तो है
जीवन है तो है
इस जीवन की चादर में
सांसों के उलझते धागे है
दुःख की थोड़ी सी सलवट है
सुख की महक भी सुहानी है
ऊपर बैठा वो बाजीगर
जाने क्या टिप्पणी करेगा
कल का कोई ठिकाना नहीं
आज का कोई जमाना नहीं
चादर ओढ़े सुकून मिलता है
उठाओ तो ग़मों का सवेरा दिखता है
अब तो मुसीबतों के छेद बड़े हो गए
इन्हें कैसे मैं सीलूँ
चाहे जितना भी जतन करूँ
आंसुओं से गीली होती जा रही है
ईश्वर की जिम्मेदारी स्मरण हो आयी
किस जरूरत मंद के तन को ढक दे
अपने दामन में उम्मीद के दाने
फिर से भर ले
दुआ क़ुबूल हो जाएगी
तू नयी विश्वास की चादर ओढ़ ले
