जीवन चक्र
जीवन चक्र
जाने कहा गया वो बचपन का जमाना
कभी रोना तो कभी खिलखिलाके हँसना
चिंता मुक्त पर न कोई समय का ठिकाना
हर पल में आनंद और हर मौसम था सुहाना।
जाने कब बचपन बीता आया बाल्यावस्था
स्कूल से थक कर आना फिर खेलने भी जाना
हर पल में मस्ती, हर पल में खुशियों का बहाना
यारों की यारी में निकल गया बालपन का भी जमाना।
देखते देखते माँ का आँचल छूटा पराया हुआ सारा अपना
और ज़िन्दगी बन कर रह गया सिर्फ नौकरी का दीवाना
आगे बढ़े, तरक्की हुई, पर जो न हुआ वो था रिश्ते निभाना
उम्र बढ़ी, सुख चैन छूटा, तबीयत ने भी हमसे मुँह मोड़ा।
बुढ़ापा भी आता है, ज़िन्दगी को तो बस था ये बताना
पहले हमने छोड़ा जमाना आज हमें छोड़ा जमाना
घर है वीरान, ज़िन्दगी है परेशान,
किसे कहे पराया और कौन हुआ अपना
ज़िंदगी कट रही है पर खुशियों का नहीं है कोई ठिकाना।।
