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Annada Patni

Tragedy

4.6  

Annada Patni

Tragedy

जीने की राह

जीने की राह

2 mins
371



       

हे भगवन,कितने जतन से तुमने 

इस सृष्टि का निर्माण,

यह सोच कर किया होगा कि 

अथाह सागर की गहराई में 

प्यार भी अथाह ही होगा,

कलकल बहती नदियों में 

प्रेम का निर्मल प्रवाह होगा।

उतुंग श्रृगों के शिखर पर, 

स्नेह का परचम लहरायेगा ।

हरे भरे पेड़ों,वन उपवन में 

सौहार्द के फूल खिलेंगे ।

पशुओं की पदचापों में ,

साथ चलने की गुहार होगी । 

पक्षियों के कलरव में,

मीठी सी चहचहाहट होगी ।


मानव का निर्माण भी तुमने 

यही सोच कर किया होगा कि

भिन्न प्राणी यह सबसे होगा, 

जो संवेदना,भावनाओं के 

अतिरेक के कारण अनोखा होगा ।

बुद्धि और विवेक का विशेष उपहार 

ले यह विकास का साम्राज्य बिछायेगा ।


पाकर ईश्वर से प्रकृति का वरदान

मनुष्य फूला न समाया ।

अपने चारों ओर इतनी संपदा,

देख ख़ूब भरमाया ।

सूरज की किरणों की ऊष्मा ,

चाँद की धवल शीतल चाँदनी ,

सागर, नदियाँ, झरने, जीव जंतु

पशु पक्षियों, घने जंगलों का साया ।

पर्यावरण का नैसर्गिक सौंदर्य 

मानव बुद्धि को खींच रहा था ।

भौतिक, जैविक, रसायन आदि शास्त्रों से

लाभ उठाने को विवेक अधीर हो रहा था । 

तुरत फुरत जंगल कटे, 

उनकी जगह ऊँची अट्टलिका महल बने ।

कारख़ानों ने जन्म लिया और 

शुद्ध हवा को दूषित किया ।

जितना भी कूड़ा कचरा था, 

वह पानी में बहा कर 

नदियों को कलुषित किया । 

भूल गया कि दूषित जल, 

जीवजंतु , हर प्राणी के लिए 

है हानिकर और रोगों का घर ।

अपने स्वार्थ के वशीभूत हो 

प्रकृति से खिलवाड़ किया । 

पर्यावरण की शुचिता मिटा कर

मनमानी कर उस पर आघात किया ।


सर्वशक्तिमान होने के दंभ ने,

दैविक शक्ति को झुठला दिया ।

तकनीकी ज्ञान के आधिक्य ने 

मनुष्य को म़शीनवत कर दिया ।

न रही करुणा, दया, संवेदना हृदय में, 

मानव को मानव से दूर कर दिया ।

अहंकार, लोलुपता, ऐश्वर्य विलास ने 

विवेक की आँखों पर पर्दा डाल दिया ।


वह क्यों नहीं समझ पा रहा कि 

वायु, जल, थल, अग्नि, आकाश,

इन पांच तत्वों से जीवन हमारा है 

जल,प्रकृति, पर्यावरण के संरक्षण 

और संतुलन का दायित्व हमारा है ।


आख़िर कब तक सहती, चुप रहती, 

अपने ऊपर अनाचार होने देती ?

तब मूर्ख समस्त मानव जाति को 

सबक सिखाने की प्रकृति ने ठानी ।

बाढ़,अकाल, भुखमरी, महामारी, 

भूचाल से हिला दी पृथ्वी सारी ।

मिट्टी मे मिला दिया वह सबकुछ, 

जिस पर नाज किया था भारी ।

आज त्रस्त है समूचा संसार,

पड़ी कॉरोना की है भारी मार ।

हो जाओ सचेत और समझ लो, 

मत करो खिलवाड़ प्रकृति से,

जो दिया है उसने, कृतज्ञता से ग्रहण करो।













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