अनोखी होली
अनोखी होली
नहीं मना पाएँगे होली,
धूमधाम से इस बार तो क्या ?
सोच कर देखो, वर्ष भर में एक बार,
सबके लिए आता है होली का त्यौहार है,
पर भाग्यवान हैं हम महिलाएँ
कि हमारे लिए तो प्रतिदिन यह त्यौहार है ।
रंगों से खेली जाती है होली,
रंग भरी महिलाओं की झोली,
दिन उगते ही, रसोई में घुसते ही,
जब करती खाने का उपक्रम,
तभी शुरू हो जाता रंगा रंग कार्यक्रम ।
पीला रंग हल्दी का,
लाल, लाल मिर्च का,
सफ़ेद रंग, धवल नमक का,
इनके बिना खाना है फीका,
जीवन भी है इन बिन फीका ।
रंगों ने है रंग जमाया,
सजने का अवसर दिलवाया ।
यह रंगों का ही चमत्कार है,
जो लाता चेहरे पर निखार है ।
लिपस्टिक देती होंठों को लाली,
बिंदी, काजल छवि निराली,
रंग बिरंगी चूड़ियाँ, रंग बिरंगी साड़ियों,
पहन जिन्हें इठलाती सजीधजी सब नारियाँ ।
तारीफ़ों को सुनती शर्मा कर,
गाल हो जाते लाल टमाटर ।
तो देखा, कैसे तीन सौ पैंसठ दिन,
होती हम पर रंगों की बौछार,
भीग कर इसमें आनंदित होती
गदगद हो हर्षाती हर नार ।
हैं कृतज्ञ हम, भाग्य की है बात,
भगवत्कृपा से मिली हमें जो रंगों की सौग़ात ।
पर पुरुष मंडली भी कम उस्ताद नहीं है ।
होली पर पीछे रहने वाली नहीं है ।
भले नहीं मना पाए यारों के संग होली,
पर अपनी अपनी बीवी पर रंग डाल कर,
मदहोशी से झूमेंगे, नाचेंगे, भांग चढ़ा कर,
“रंग बरसे भीगे चुनर वाली” मस्त तर्ज़ पर,
गा गा कर रीझेंगे और रिझाएँगे ढोलक पर ।
लो बस मन गई होली, घर में मचा हुड़दंग,
खाए सबने पकवान, हास उल्हास के संग ,
सावधानी रखी, त्यौहार मना रंगों के संग।
फिर भी दुआ है रहे ख़ुशहाली अगले वर्ष,
धूमधाम से खेलें होली मन में लिए उमंग हर्ष ।
