झूठा आदमी
झूठा आदमी
आंखें हंसती है और चेहरा रोता है
ऐसा साखी उनके ही साथ होता है
जिसके दिल मे चोर छिपा होता है
वो हर जगह पर शर्मिंदा होता है
झूठ के कभी कोई पैर न होता है
झूठा शख्स, झूठ का घर होता है
आंखें हंसती है और चेहरा रोता है
जिनके हृदय में पाप भरा होता है
उनके जीने का कुछ मतलब नहीं,
जिनके जीने से धरा पे भार होता है
उनसे भले तो वो जानवर है,
साखी जिनसे किसी का तो भला होता है
आंखे हंसती है और चेहरा रोता है
बेईमान मीठा बोलनेवाला तोता है
वो तो जिंदा होकर भी मुर्दा होता है
जिसके सीने में ईर्ष्या-द्वेष होता है
उनका जीना सार्थक है,ज़माने में,
जिनके आंसू से दरिया छोटा होता है
वो भले हृदय से मजबूत पत्थर है
फिर भी वो दीवार का सहारा होता है
उनके होने का कुछ तो मतलब है,
जिनसे किसी शीशे का अक्स होता है।