जब रक्त गिरता है वीर का
जब रक्त गिरता है वीर का
जब रक्त गिरता है वीर का,
सरहद पर गुल मुस्काता है,
गर्वित होता देश सारा,
तिरंगा भी झुक जाता है।
उस बाप की छाती को सोचो,
कैसे पत्थर दिल पिघला होगा,
जब सूरज उगने से पहले,
बेटे का शव निकला होगा।
आँसू का हर कतरा-कतरा,
धूमिल मन की आशाओं पर,
झर-झर झड़ते उन नयनों से,
कुर्बानी की गाथाओं पर।
बिगुल बजा रणभेरी का जब
वो गीत पुनः फिर गाता है।
गर्वित होता है देश सारा,
तिरंगा भी झुक जाता है।
बूढ़ी माँ की आँखों ने,
सपनों का महल बनाया होगा,
जब बेटे की अर्थी देखी,
असुयन से उसे गिराया होगा।
आहट सुनकर बहनों ने जब
घर की ज्योत जलाई होगी,
कफ़न देख फिर भाई का,
साँस अटक कर आई होगी ।
दुख की इस बेला में कैसे,
हाँ धीरज कोई दिलाता है।
गर्वित होता है देश सारा,
तिरंगा भी झुक जाता है।
रोती बिलखती पत्नी का हाय,
अब रुदन कलेजा सोया है
कितनी सूनी माँगों ने फिर,
जीवन का अर्थ खोया है।
आतंकवाद है खेल सियासत,
तू कितनी नफरत बोयेगा ?
क्या इस भारत की जन्नत में,
हरदम मुर्दा ही सोएगा ?
उस थाली में छेद करे क्यों,
जिस थाली में खाता है।
गर्वित होता है देश सारा,
तिरंगा भी झुक जाता है।
