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संजय असवाल

Abstract

4.7  

संजय असवाल

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जब मैं मरूंगा

जब मैं मरूंगा

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जब मैं मरूंगा 

इस जहां के लिए 

और जी उठूंगा 

बिना देह मुक्त आत्म लिए 

उस जहां में,


मैं अपने साथ लाई हर चीज को 

उन पुरानी दर्द भरी यादों को,

फेंक दूंगा यहां 

नए जहां के गटर में,

और जो फेंकने लायक नही होगा 

उसे अपनी शमशान की 

आग में झोंक कर आऊंगा,


यहां मैं सुकून चाहूंगा

किसी प्रकार का भय,लालच,ईर्ष्या 

और मोह माया का 

यहां कोई वजूद ना होगा,

मेरी आत्मा यहां मुक्त होगी 

हर ओर विचरण के लिए,

वो जो चाहती है 


वो करने के लिए,

उसे किसी भी प्रेम पाश में 

बंधने नही दूंगा,

ना किसी के मोह में फंसने दूंगा,

उसे ना किसी के लिए 

ईर्ष्या की आग में जलने दूंगा,

वो यहां रहेगी स्वतंत्र 

जब तक उसका जी 

चाहेगा,

पर उसे एक बात भूलने नही दूंगा 

उन कड़वी यादों को 

दिल में बांधे चलता रहूंगा,

याद रखूंगा उन्हें जरूर

जिन्होंने मुझे जीते जी 

खुश रहने नही दिया......!


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