जब मैं छोटा था
जब मैं छोटा था
जब मैं छोटा था,
तो मैं उड़ना चाहता था,
हाँ मैं आज उड़ तो रहा हूँ,
पर एक हवाई जहाज के,
रहनुमा की औकात से नहीं,
बल्कि एक आला दर्जे की,
कंपनी के एग्जीक्यूटिव की औकात से।
जब मैं छोटा था,
तो मैं लिखना चाहता था,
अपने जज्बातो को,
शब्दों में पिरोना चाहता था
हाँ मैं आज लिख तो रहा हूँ,
पर एक शायर की औकात से नहीं,
बल्कि एक जौर्नालिस्ट की औकात से।
ऐसे ही कई,
हज़ारो मैं क्या बनाना चाहते थे,
और क्या बन गए.
उन हज़ारो 'मैं' में, एक 'मैं' मैं भी था।
आज जब कलम पकड़ी और, "ड्रीम्स टू डाई फॉर",
पर लिखना शुरू किया,
तो मन में एक हलचल-सी मच गयी।
क्या था जिसके कारण,
आज मैंने अपने सपनों को,
केवल सपना ही रहने दिया,
न मेरे माँ बाप ने,
न मैंने खुद से,
गाड़ी बंगले की माँग की थी।
तो फिर क्या था वो,
जिसने मुझ वीरेन दरगर से,
जर्नालिस्ट वीरेन दरगर बना दिया था
क्या था वो जिसने मुझे,
पायलट वीरेन दरगर से,
कंसलटेंट वीरेन दरगर बना दिया था।
थोड़ा सोचा तो ज्ञात हुआ, ये सपने मेरे नहीं,
ये सपने तो किसी और के थे।
मैं इसी सोच में डूबा हुआ था,
कि तभी मेरा दोस्त,
मुझसे पूछ बैठा,
तेरा क्या सपना है
मेने कुछ पल सोचा,
और फिर बोल बैठा,
मेरा एक ही सपना है,
कि मैं अपने सपनों को पूरा कर सकूँ ।।