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Vidya Lakshmi G

Abstract Others

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Vidya Lakshmi G

Abstract Others

जब दर्द ही दवा बन जाता हैं

जब दर्द ही दवा बन जाता हैं

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अल्फाज़ दिल की कह नहीं पा रही हूं,

टूटे दिल की टुकड़े समेट नहीं पा रही हूं।

याद जो आ रही हैं तेरी 

उसे सीने से लगाना चाहती हूं।

अफसोस यादें चीख रही हैं दर्द से

जो बयान मैं चाहकर भी ना कर पा रही हूं।


दर्द है लाजवाब,

दर्द है मरहम,

पर इस दर्द में मर हम जाना चाहते हैं,

और दौड़ कर तुम्हारे उस 

तारों के परिवार में शामिल होना चाहते हैं।


प्यार हैं मगर मिलन नहीं।

याद है मगर ताकत नहीं। 

यादों के सहारे चलना तो सीखा,

मगर यादों के बगैर मरना न समझा।


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