इश्क
इश्क
वो मोहब्बत इस कदर निभाती है...
मैं दगा करने से डरता हूँ
वो धड़कनों से ज्यादा मुझे चाहती है,
मैं उसके दूर जाने से डरता हूँ।
आदत है मुझे उसकी,
वो मुझे अपनी जरूरत बना चुकी है
मैं मोहब्बत निभाता हूँ,
वो मुझे ख़ुदा मानती है!!
मैं साथ देने की बात करता हूँ ,
वो मेरे साये के साथ जी लेने की बात करती है।
मैं दूर होकर मरने की बात करता हूँ,
वो मेरे लिए जान देनी की बात करती है।
ये रब, इतनी मोहब्बत देख,
आंखे भर आती.
इतनी वफ़ा न जाने वो,
कहा निभा लेती है।
हार जाऊँगा इश्क को निभाते
वो हर बार मुझे पलकों पर बिठाये रखेगी।
मैं निभाउंगा मोहब्बत मरते दम तक,
उसकी वफ़ा पर जरा सा भी दाग नही लगने दूँगा।"

