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love Sharma the great

Romance

4  

love Sharma the great

Romance

इश्क की हद

इश्क की हद

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सोच किस कदर मजबूर रहा हूं मैं,

तू छोड़ के जा रहा था मैं रोक ना सका।


बंजर हो गए दिल, जिगर,नजर,

मैं ठहाके लगता रहा रो ना सका।


तुम बात करते हो मेरे हर वक्त मुस्कुराने कि,

अरे, लोगों की उम्मीद हूं उदास कैसे हो जाऊं, 


लोग देते हैं मिसाल मेरी,

तू ही बता भरी महफ़िल में मैं कैसे रो जाऊं ।


दिल, जिगर, नजर, लब, सांस, लहू और रुह में बसी है तू,

तू ही बता किसी और का मैं कैसे हो जाऊं।


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