इंसानी दुनिया...
इंसानी दुनिया...
दोस्तों, अंजान - सी इस दूनिया में,
बहुत ही सोच - समझकर चलना पड़ता हैं ।
कभी दुखी हो के भी मुस्कुराना पड़ता है ,
तो कभी खुशीयां छूपानी पड़ती है।
क्या पता अचानक आंधी आए और
खुशीयों को ही निगल जाए....
कभी कभी सिर झुकाना ही अच्छा है,
तो कभी झूठी शान भी दिखानी पड़ती हैं
अपनी दोस्ती बचाने के लिए....
बहुत ही जालीम है ये दुनिया,इसका कोई भरोसा नहीं ,
कभी हंसाती है ,तो कभी रुला भी देती है ।
कुछ अंजान सी हूँ इस दुनिया से,
उलझ सी गयी हूँ कुछ सवालों से।
क्या करूं ? कुछ समझ में नहीं आता....
अलग अलग से लोग दिखाई देते है इस दुनिया में,
कहीं सच को दफनाया जा रहा है,
तो कहीं झूठी खबरे अखबारों में
बार बार छपकर आ रही है।
इतना ही नहीं दोस्तों!
बचपन में ,
मां - बाप की छाव में पलकर
बड़े होने के बाद ,
जब उनकी बारी आती है
तो बिना सोचे नीचा दिखाकर वृद्धाश्रम में ठहराया जाता है!
बहुत नीच है इस तरह के लोग,
जो साक्षर होकर भी एक अनपढ़ की जिंदगी जी रहे है!
मां - बाप की सेवा करने का ही तजुर्बा नहीं ,
तो शिक्षित होने का घमंड कैसा!
एक इंसान ही दूसरे इंसान के काम न आया,
तो इस इंसानी दूनिया मे आकर कुछ मतलब नहीं ।
इसीलिए,
पहले इंसान की अपनी - अपनी सोच बदलना जरुरी है दोस्तों ,
दुनिया तो अपने आप ही बदल जाएगी !