इंसान के गुरूर का अंजाम
इंसान के गुरूर का अंजाम
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इंसान के गुरूर का अंजाम ही तो है,
हर ओर आज देखिए कोहराम ही तो है।
मायूसियों के दौर में संयम नियम रहे,
कुदरत ने दे दिया हमें पैगाम ही तो है।
नासाफ़ सी फ़जाओं में सुकून क्यों नही,
मंजर दिखे तबाहियों के आम ही तो है।
है कौन मानता यहाँ पर अपनी गल्तियाँ,
लेते सभी मुकद्दर का नाम ही तो है ।
आजाद हैं परिंदे कैद घर में आदमी,
आखिर किसी गुनाह का इल्जाम ही तो है।