इंकलाब लाना होगा
इंकलाब लाना होगा
कोई तरकश कोई तीर उठाना होगा
वक़्त कह रहा अब इन्कलाब लाना होगा
चलते नहीं हैं रास्ते किसी के जहान में
मंजिलों की जिद है तो क़दम बढ़ाना होगा
पैरों पे ज़ालिम के कब तलक गिरना
कि सबको अब आँख मिलाना होगा
चिराग रोशन कभी बर्बाद हवा करती है
घर जले कोई तो आग बुझाना होगा
ये अमीरों की सियासत है सब छीन लेगी
कि बिकने से जमीन ये आसमान बचाना होगा
तूफान ने ठानी है भंवर में डुबोने की
कश्ती की ज़िद है उस पार जाना होगा
साहिल पे किसको आवाज दे रहे
लहरों पे जिगर अपना सबकों आजमाना होगा
हुकूमत कहती है की बैंक घाटे में है
सच ज़माने को जरा दिखलाना होगा