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Wakil Kumar Yadav

Others

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Wakil Kumar Yadav

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मानव घर में कैद है

मानव घर में कैद है

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रात गुजर जाती है सुबह के इंतज़ार में

फिर दिन गुजरने लगता है यू ही बेकार में

नहाना तक भी भूल जाता हूं

पर बाथरूम बार बार जाता हूँ

टी वी से घृणा सी हो गई है

खुशी न जाने कहाँ सो गई है


जब किसी का फोन आता है

बस वही खुशी के क्षण लाता है

बच्चों की किलकारी नहीं मिलती

शरारत से खुली अलमारी नहीं मिलती

कैरम रखी है कोई साथी नहीं है

खेल की नियमों की माथा पच्ची नहीं है

अब किसी से न कोई मतभेद है

यातना में मानव घर में कैद है


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