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इम्तिहान आपका भी

इम्तिहान आपका भी

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इम्तिहान तो होता है तेरा 

माँ की कोख से ही प्रारंभ

क्योंकि तू है नारी का प्रादुर्भाव

कि तुझे 

इस जगत् में 

आमंत्रित किया जाए या नहीं 


यदि करुणा वश

बख्श दी गई सांसें तुझको

तो कैसी होगी भावी रूपरेखा

तेरे आगामी जीवन पथ की

और कहाँ-कहाँ देनी होगी


तुझे अग्नि परीक्षाएं पग-पग पर

यह भी तय करेगा 

दंभी पुरुष समाज ही

जो रखता निज हाथों में कुंजी 

तेरे प्रति पल की

समय है अब नारी को 


एक ऐसी सीता बनने का 

जो तर्क दे सके हर उस समाज को 

जो एक लम्बे समय तक परायों 

के मध्य रहने का दण्ड देते हैं 

उसे एक अग्नि परीक्षा देने का

और कहे 


कि ऐ आडम्बरयुक्त समाज

इतने लम्बे अंतराल के पश्चात् 

मैं भी क्यों स्वीकार करूं राम को

बिना उनकी अग्नि परीक्षा लिए। 


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