ईहा
ईहा
भरी बिहाने घुमड़े बादल
जाकर सुई चुभा दी मैंने!
धरा मिले जहँ व्योम से चैन
जा वो जगह बता दी मैंने!
दिनकर छुप्यो ज्यों अंबर में
चंद्र को टहल थमा दी मैंने!
तारों की लै, लड़ी घुमाय
रजत हास बढ़ा दी मैंने!
ठुमक-ठुमक आयी निंदिया
भूमि पै रात बिछा दी मैंने!
अँखियाँ मींच कै लेट गयी
फेर तेरी छबि बुला दी मैंने!
उर में जग्यो नवल-प्रभास
पर, प्रथमतः ईहा दी मैंने
