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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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इच्छाएं

इच्छाएं

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इच्छाओं का अंत नहीं

बेइंतहा बढ़ती ही जाती हैं

इक घर गाड़ी ,बंगला हो

तो इक और के सपन सजाती हैं

जीवन में आगे बढ़ो नाम यश भी खूब पाओ

पर इच्छाओं के यूं बढ़ने पर थोड़ा तो रोक लगाओ

खुशियां मंहगी चीजों से नहीं मिलतीं

आराम और सुविधाएं ही ये दे सकती हैं

फिर भला कब तक भागोगे इन के पीछे

ज़रा अपने अंदर भी झांक कर देखो तो।


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