हृदय और व्यक्तित्व
हृदय और व्यक्तित्व
छोटे गलतियां करते ही हैं, इसलिए नहीं की वो नासमझ होते है
या खुद को बड़ा समझते है बल्कि इसलिए क्योंकि
छोटों को गलतियां करने का अधिकार होता है
उनकी नियति होती है वो बड़ों के सामने गलतियां करें,
और उनकी ज़िद होती है बड़े उनकी गलतियों को माफ करें या उपेक्षा करें,
स्वाभाविक ये दुलार होता है लेकिन एक उम्र के बाद ये दुलार एक ज़िद या ढीठ पन बन जाता है
जिसे आप वक्त या समय की मांग भी बोल सकते है...
फिर भी अगर थोड़ा सहज और विनम्र होकर सोचा जाए तो
उनकी गलतियों को सुधारा जा सकता है बड़ों की कोशिशों से,
हां कुछ अपवादों को छोड़कर....
लेकिन अगर बड़े हमेशा एक ज़िद पकड़ ले उन्हें वही करना है जो छोटे करते है
एक बदले की भावना या जैसे को तैसा जैसी मानसिकता कभी भी किसी भी समस्या से निजात नहीं है....
हमारा धर्म हमेशा छोटों को बड़ों के आगे झुकना सिखाता है
लेकिन बड़ों को हृदय से झुक जाने के योग्य बनाता है ताकि उन्हें ये ध्यान रहे ,
हृदय का स्थान सदैव पैरो से ऊपर होता है क्योंकि वो बड़े है
तो उन्हें हृदय में धैर्य नम्रता और धीर रखना ही पड़ेगा.....
यकीन मानिए परिस्थितियां कितनी भी विकट क्यों न हो,
अगर बड़ा स्वाभाविक झुक जाए तो बड़ी से बड़ी दुविधाएं और जटिलताएं आसान हो जाती है
लेकिन अगर इसके विपरीत छोटा झुकता है तो बड़े के गुरूर में भले ही बढ़ोतरी हो जाए
लेकिन उसके सम्मान में कभी भी छोटों के अंदर वो भाव नहीं आएगा
क्योंकि सम्मान कभी पैरो से नहीं होता हृदय से होता है ।।
हृदय में हमेशा व्यक्तित्व का वास होता है अर्थात बड़ी बातों का ही वास होता है ।।